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लेखनी प्रतियोगिता -30-Apr-2023


इतने कदम चलूं कि चल चल के थक जाऊं
कितना और चलूं कि मैं तुमको पा जाऊं।

कैसे भावों को मर्यादा पहनाऊँ मैं
कैसे प्रेमी से साधू भी बन जाऊं मैं
कैसे मानूँ अब तुम मेरे पास नहीं हो
किसको अपने प्रेम की माला पहनाऊँ मैं।

याद तुम्हें करके ये रोम रोम खिलता है
मेरी उम्मीदों का चेहरा तुमसे ही मिलता है
या तो कह दूं तुम हो इस मन की मृगतृष्णा
या फिर ये सब मन की मेरे उच्छ्रंखलता है।


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2 Comments

खूबसूरत भाव और अभिव्यक्ति

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Reena yadav

01-May-2023 06:59 AM

👍👍

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